Thursday 25 February 2016

Amazing Landscape of Hills

               उत्तराखंड में पले बढे होने के कारण बरफ से ढके हुये पहाड़, आँखों के सामने चमचमाती हिमालय श्रृंखला, उनसे निकल कर कल कल बहती नदियों और मीठे पानी के झरनों का साथ बचपन से ही हमारे साथ बना रहा है।  ये प्राकृतिक सौंदर्य हमारे रोज मर्रा के जीवन में इस तरह से सम्मिलित था कि कभी ये विचार मन में आया ही नहीं कि जिंदगी इससे इतर भी हो सकती है। पहाड़ों की इस अनूठी विशेषता का अहसास तब हुआ जब यहाँ से बाहर निकलने के बाद  इन अप्रतिम नज़रों के दर्शन होंने बंद हो गए। अब याद आने लगे केन्ट एरिया में होने के कारण हरी भरी वादियों वाले रानीखेत के चक्कर जो ना जाने कितनी बार लगाये होंगे। कई बार नैनीताल जाने के बाद भी वहां की नैनी झील का आकर्षण आज भी कम होने की जगह और बढ़ता गया। पर दिन हमेशा एक से तो नहीं होते अब इनकी जगह जहाँ तक नजर डालो वहां कृतिम तरीक़ों से उगाई गयी घास दिखती है या फिर इनकी जगह करीने से लगे हुए नारियल के पेड़। इस पड़ाव पर आने के बाद अब जब घर जाने का अवसर मिलता है तो भीमताल के पास से जो प्राकृतिक दृश्य दिखाई देने शुरू होते हैं उनका महत्व  एवं आकर्षण अचानक से कुछ ज्यादा ही बढ़ सा गया ।
अल्मोड़ा से दिखती हिमालय श्रंखला  

सुबह के समय कोहरे से ढकी पहाड़ियां 
नैनी झील 
रानीखेत गोल्फ ग्राउंड 
               उत्तराखंड की इन मनोरम वादियों से तो हम परिचित ही थे पर देव भूमि में अपने पडोसी राज्य हिमाचल से सुखद साक्षात्कार के अवसर नहीं मिल पाये थे, पढ़ने के दिनों में दिल्ली प्रवास के समय  एक दो बार शिमला जाने का प्लान बनाया, पर वो भी सम्भव नहीं हो सका। हिमाचल के सुरम्य स्थलों में से एक मनाली के नाम से तो पर्यटन या घुमक्कडी में रूचि रखने वालों में से शायद ही कोई अनजान हो, तो इस जगह का आकर्षण हम भी कैसे छोड़ सकते थे। वैसे पुरानी उक्तियों के अनुसार मनाली का नाम मनु के नाम पर रखा गया, पर इस विषय में मेरी एक अलग सोच भी है पहाड़ी भाषा में  एक वाक्य 'मन-आली नी आल' है, जिसका तात्पर्य ये होता है मन आएगी या नहीं, इसलिये  मेरे अपने विचारों में जो मन आ जाये वो मनाली। अब सोचना ये था जब जगह का नाम ही इतना सुन्दर तो जगह कितनी निराली होगी। जितना इस बारे में सोचा उतना मनाली के प्रति आकर्षण बढ़ता गया, गूगल में बैठ बैठकर कई सारे फोटो देखे और इसके साथ साथ उन जगहों को अपनी आँखों से देखने की चाहत भी बढ़ती ही चली गयी। इस तरह से जुलाई,2011 के शुरुवाती दिनों में मनाली जाने का प्लान बनाया गया, पर कहते हैं जिस चीज के पीछे जितना भागो वो अपने पीछे उतना और भगाती है, ये ही हमारे साथ भी हुआ जिस दिन जाना था उसके पहले दिनों में मूसलाधार बारिश के कारण जाना मुश्किल ही हो गया, उसी दौरान लेह में बादल फटने वाली ह्रदय विदारक घटना भी हुयी। इस तरह से ये प्रयास असफल रहा, पर मनाली जाने की चाहत ने कभी पीछा नहीं छोड़ा, या कहा जाये कि वो और जोर पकड़ गयी । 
                 अब जब इच्छा मन में बस ही गयी थी तो एक बार फिर से 2013 जून लास्ट के दिनों का प्लान बनाया गया, इस समय अंतर ये रहा कि चंडीगढ़ से होते हुए जाने का विचार था और साथ में छोटा  छोटा बच्चा भी था। पर हमारा भाग्य एक बार फिर उत्तराखंड और हिमाचल पर प्राकृतिक आपदा आ गयी, हमारा विचार भी लगभग उन्ही दिनों में जाने का था , अब एक बार फिर से सारा मामला ठन्डे बस्ते में चला गया। पहली बार के असफल प्रयास ने जेब में ज्यादा फर्क नहीं डाला था, पर अबकि बार तगड़ी जेब कटी। इस बार तो सोच ही लिया था कि मनाली जाना हमारे बस का नहीं प्रतीत होता है। इसके बाद कहीं भी जाने का प्लान बनायेंगे पर मनाली नहीं जायेंगे। 
                इसके बाद कुछ समय तो हम शांति से बैठे रहे पर अगर एक बार किसी जगह जाने को मन मचल ही गया हो, तो फिर इतनी आसानी से पीछा कहाँ छोड़ता है। 2014 के अंतिम दिनों में मन ने एक बार फिर मनाली जाने के लिए उछालें मारना शुरू कर दिया और उसका साथ दिया एयरलाइन कंपनी द्वारा समय समय पर आने वाले रोचक ऑफर ने। यूँही एक दिन फिर से मनाली जाने के लिए मई,2015 में बंगलौर से चंडीगढ़ की फ्लाइट बुक करवा डाली। हालाकिं पिछले दो बार की असफलता के कारण इस बार भी यात्रा को ले कर जाने जाने तक मन में संदेह तो था ही, पर आशा और निराशा के बीच घर से निकलने का समय आ ही गया और हम निकल पड़े । बैंगलोर से चंडीगढ़ का सफर तो आप लोग पढ़ ही चुके हैं, चंडीगढ़ से आगे मनाली के लिए हिमाचल परिवहन के हिम गौरवी में पहले से टिकट आरक्षित करा रखे थे। चंडीगढ़ से नियत समय पर बस चल पड़ी, पर थोड़ी सी दूरी तय करते ही  ड्राईवर साहब ने भोजन करने के लिये विश्राम ले लिया।
                करीब आधे घण्टे बाद बस फिर चालू हुयी पर ये क्या एक घण्टा भी नहीं हुआ था कि बस से आवाज आनी शुरु हो गयी, काफी देर तक छानबीन करने के बाद पता लगा बस का एसी ख़राब है उसी वजह से आवाज आ रही है पर रह रह कर स्पार्किंग के कारण जो धुंआ आ रहा था उसे देखकर सभी यात्री थोडा घबरा ही रहे थे, क्योंकि एक तो बस देखने में भी थोडा खटारा किस्म की थी उस पर जगह जगह खड़ी हो जा रही थी। सबके मन में इस बात का संशय ही था कि ये मनाली तक पहुंचा भी पायेगी या नहीं। खैर बस कछुवे की चाल से रुकते रुकाते आगे बढ़ने लगी तो सभी यात्री भी सो गए, लेकिन सुबह छह बजे के समय पर मंडी से थोड़ा आगे  औट(Aut) नामक जगह पर फिर से खड़ी हो गयी। थोड़ी देर के बाद ये बता दिया गया कि ये बस आगे जाने लायक नहीं है और फिर क्या था सभी यात्री ड्राईवर के ऊपर झल्लाने लगे कि ये क्या है। उसने कहा कि किसी दुसरी बस में बैठा देगा लेकिन थोड़ी देर इंतजार करना पड़ेगा। एक घंटे से ज्यादा समय निकल गया पर किसी भी बस वाले ने बैठाने से मना कर दिया क्योंकि वैसे ही सभी बस भरी हुयी आ रही थी और चालीस से ज्यादा यात्री सड़क पर खड़े थे। अब कोई ले भी जाये तो किस किस को, सभी जल्दी में थे।  आधे घंटे से अधिक इंतजार करने पर भी कोई बस नहीं आई तो हमने ये सोच लिया कि अब जो भी टेक्सी आएगी खाली उस में ही बैठ जायेंगे क्योंकि इस तरह कब तक सड़क में खड़े रह सकते हैं । गरमी का मौसम होने के बाद भी सुबह के समय तापमान 2* सेल्सियस था।
              इस समय ठण्ड जरूर लग रही थी पर  पूरी रात का सफ़र करने के बाद एक घंटे से सड़क पर खड़े होने के बाद भी थोड़ी देर की भी बुरा नहीं लगा शायद इसके पीछे यहाँ पर से दिखाई देने वाले प्राकृतिक दृश्यों का योगदान रहा होगा। लोग बस देखना छोड़ के फ़ोटो लेने में व्यस्त हो गए थे। इतनी देर में एक टेक्सी वाला जो कुल्लू का था उससे बात करी तो वो कुछ वाजिब रेट में मनाली तक छोड़ने को तैयार हो गया। यहाँ से लगभग पुरे रास्ते व्यास नदी ने हमारा साथ निभाया, इसके तीव्र उफान को देखकर कभी अच्छा लग रहा था तो कभी डर भी लग रहा था। व्यास नदी का तीव्र वेग देखकर रह रह कर उत्तराखंड की पिंडर नदी की याद आ रही थी, और टेक्सी वाला व्यास नदी के उफान के किस्से सुना कर डरा रहा था। ओट के बाद पहाड़ियों पर दिखने वाले हरे रंग में एक अलग आकर्षण सा लग रहा था, शायद ये हरा रंग थोडा ग्रे कलर लिया हुआ था। वैसे बस खराब होने का एक फायदा भी हुआ, ठण्ड लगने के कारण हम लोग उठ गए थे, अगर बस में होते तो सोये ही रह जाते और रास्ते के इन नयनाभिराम दृश्यों के दर्शन नहीं कर पाते। थोडा आगे बढे ही थे कि औट से मनाली को ले जाने वाली 2.7 किलोमीटर लंबी टनल आ गयी, ये वो ही सुरंग है जिससे 3 इडियट मूवी "यार हमारा था वो" गाने के बाद फ़्लैश बेक में चली गयी थी। उत्तराखंड और हिमाचल की पहाड़ियों में शायद इस रंग का ही अन्तर होगा। दो घंटे में हमने मनाली में अपने पहले से बुक करे हुए होटल में चेक इन कर लिया। होटल में चाय नाश्ते के बाद थोड़ी देर विश्राम करने का विचार था, पर बालकनी से दिखने वाली पहाड़ियों ने मन प्रफुल्लित का दिया। इस यात्रा के कुछ शुरुवाती दृश्य -


हवेली 
खटारा  बस ,और हाँ ये बाहर से फिर भी अच्छी लग रही है,अंदर इसकी हालात भयंकर ही थी।
औट टनल
औट से मनाली का रास्ता 
लहराती बलखाती व्यास नदी 
व्यू फ्रॉम होटल 
व्यू फ्रॉम होटल 
इस श्रंखला की अन्य पोस्ट -

34 comments:

  1. बहुत सुंदर लिखा है हर्षिता जी आपने । जब तक भाग्य में न हो किसी स्थान पर जाना संभव नहीं । चित्र काफी कम हैं लेकिन खूबसूरत हैं

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    1. अभी तो बस पहुंचे ही है, बाकि फोट अगले पोस्ट में

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  2. नैनी झील से याद आया वो गाना- तालों में नैनीताल बाकि सब तिलैया.... तिलैया वही झारखण्ड का झुमरी तिलैया:)

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    1. हा हा हा, सही कहा आपने, बचपन में नैनीताल जा के ये ही गाना गुनगुनाया जाता था तालों में ताल नैनीताल।

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  3. पहाड प्रेम रस देखने को मिला,फिर पहाड़ी वियोग रस। बाद मे एक नई ऊर्जा के साथ आप मनाली चल पड़े है, आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा।

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    1. हाँ बड़े इंतजार के बाद मनाली यात्रा शुरू हुई

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  4. कभी कभी ऐसा होता है ।मेरे साथ मन्सूरी को लेकर हुआ है 3 बार रेजर्वेशन के बावजूद भी न जा सकी और अब हर साल यही लगता है मन्सूरी चले हा हा हा तुम तो पहुँच गई अब आगे का सफर तैय करना है जो ईश्वर करे सब ठीक हो।

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    1. हाँ, हमारे लिए मनाली जाना ऐसा हो गया था जैसे कोई किला फतेह करना हो।

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  5. Apne pahad se jyada acchi jagah koi nahi parantu rojgar na hone ke karan uttrakhand ke kafi gaon khali ho gaye hain .....sadak /pani/ bijali bhi kafi gaon mein nahi hai .....

    Kafi badiya likha hai bas thode pics ki kami lagi

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    1. सच में अपने पहाड से अच्छा कुछ भी नहीं।

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  6. अब आयी मेरी पसंद की पोस्ट। जबरदस्त... मन आली। बढ़िया।

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    1. मन आली यानिकी मनाली

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  7. बहुत बढ़िया पोस्ट हर्षिता जी... और फोटो भी ...
    बस का ख़राब होना ही अपने आप में एक रोमांच की बात हुई.... ओट को मनाली का द्वार भी कहते है |

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    1. ओह यह प्रवेश द्वार वाली बात मुझे ज्ञात नहीं थी,सच में मनाली जाना बहुत रोमांचक रहा।

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  8. पहाड़ों से दूर होने का दर्द शब्दों में छलक आया |एक ही लेख में कई जगहों का उल्लेख अच्छा लगा |जैसे तैसे मनाली जाना हुआ अब बस ख़राब ,आगे की यात्रा का इंतज़ार |सुंदर लेख हर्षिता जी |

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    1. ब्लॉग पर पधारने जे लिए बहुत बहुत धन्यवाद। पहाड़ों के पास होने का अहसास ही अपने में बहुत बढ़िया है।

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  9. वाह। बहुत सुन्दर पोस्ट। मज़ा आ गया

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  10. बहुत ही बढ़िया पोस्ट ।फ़ोटो भी लाज़वाब है। मन को भाये मनाली जाये।

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  11. वाह ... जबरदस्त चित्र और कमाल का चित्रण ... अच्छी सैर करा दी आपने ...

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  12. Amazing pictures. The landscape is truly amazing.

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  13. आज पूरी पोस्ट पढ़ पाया हूँ आपकी हर्षिता जी ! पहला ही फोटो गज़ब का आकर्षण पैदा कर देता है पोस्ट पढ़ने के लिए ! बाहर से इतनी शानदार दिखने वाली बस का ये हाल देखकर " ऊँची दूकान फीका पकवान " वाली कहावत चरितार्थ हो रही है ! आपके साथ यात्रा में शामिल रहूँगा

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  14. खूबसूरत तस्वीरों से सजी सुंदर पोस्ट

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  15. खूबसूरत तस्वीरों से सजी सुंदर पोस्ट

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  16. yeh khoobsoortee or kahnin nahi.. bahut hee sundar chitra

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  17. Beautiful and scenic. I would love to be there.

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  18. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 28 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  19. अपने शहर के चित्र अच्छे लगे :) सुन्दर पोस्ट।

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    1. शहर ही अच्छा है गुरु जी

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  20. सफर के खटटे मीठे एहसासों से भरी अच्छी पोस्ट, तस्वीरें
    हमारे दिल को भी वहां बुला रही हैं |

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    1. मौका भी है, दस्तूर भी, जा आइये अर्चना जी .

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