Friday 26 February 2016

Magnificent Manali

                       गजब का आकर्षण है हिमालय की गोद में बसे शहर मनाली में, सोचने मात्र से ही नीला आसमान, हिमआच्छादित पहाड़ों की चोटियों पर उमड़ घुमड़ कर आने वाले बादलों और इन्ही पर्वतों की तलहटी में लहराती बलखाती हुयी व्यास नदी के दृश्य आँखों के सामने आ जाते हैं। यहाँ कदम रखने से पहले मन में जो आतुरता थी वो पहुँचने के बाद  कम होने के बजाय बढ़कर अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी। इस सुन्दर से पर्वतीय शहर से प्रवेश करते  ही ये  आभास  हो गया था कि यहाँ के बारे  में जितना सुन रखा है, वास्तव में ये जगह उससे भी कई गुना बढ़कर है। होटल पहुँच कर  चेक इन  की औपचारिकता करने के साथ साथ बाद चाय नाश्ते का आर्डर भी साथ में ही दे दिया ,क्यूंकि अब तक पेट में चूहों ने हाहाकार मचा दिया था। होटल  स्टाफ ने हमें कमरे तक छोड़ा और हम सामान कमरे में डालकर सीधा बालकनी में चले गए, क्यूंकि चाय के इंतजार में कमरे में बैठने से ज्यादा अच्छा बालकनी में खड़े हो कर यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य से साक्षात्कार करना था। यकीन मानिये यहाँ पर कुदरत इस कदर मेहरबान है कि एक बार बालकनी में कदम रखा तो फिर जब तक चाय नहीं आई अंदर नहीं आ पाये। 
बर्फ से ढकी पहाड़ियां 
                एक दो मिनट का लघु अंतराल भी ये बताने में सक्षम था कि यूँही नहीं मनाली की ख्याति दूर दूर तक फैली हुयी है। एक बालकनी से हिम आच्छादित पहाडियां दिख रही थी तो दूसरी से तीन चार छोटे-छोटे झरनो के दर्शन हो रहे थे। कैमरा ज़ूम कर के देखा तो अन्दाजा आया कि ये दोनों झरने एक बड़े झरने से ही निकले हुए हैं। इतने सारे झरने शायद पहाड़ियों पर पड़ी बर्फ के पिघलकर आने वाले पानी से बन जाते होंगे ये मेरा अनुमान है। सोचा तो ये था कि कुछ देर आराम करने के बाद बाहर घूमने  के लिए निकलेंगे, पर जब जगह इतनी सुन्दर हो तो मन किसी भी हाल में कमरे पर टिकने के  लिए नहीं  मान सकता। पहले कई बार यहाँ आने के कार्यक्रम बनाने के कारण हम यहाँ के दर्शनीय स्थलों से खूब परिचित थे, पर फिर भी नाश्ता करने के बाद रिसेप्शन का एक चक्कर ये सोचकर लगा लिया कि लोकल लोगों से बातकर के थोड़ा अंदाजा और हो जायेगा और उन लोगों को बोलकर अपने भ्रमण के लिए साधन की व्यवस्था भी करा ली और उसके आने तक होटल के प्रांगढ़ में बैठकर यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के बारे में एक जायजा लेने लगे।
           मनाली के चप्पे चप्पे में खूबसूरती इस कदर बिखरी है कि कौन सी जगह ज्यादा सुन्दर ये अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल है। यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल सोलांग घाटी, रोहतांग दर्रा, हिडिम्बा मंदिर, वन विहार, क्लब हाउस, मनु मंदिर एवं वशिष्ठ मंदिर इत्यादि हैं । रोहतांग और सोलांग घाटी जाने के लिए सुबह निकल पड़ना आवश्यक है, इसलिए आज मनाली के आसपास विचरण करना ही सम्भव था।
            चार साल पहले जब हमने मनाली के दर्शन का मन बनाया था तो "बी स्प्रीचुअल" के नाम पर शुरुआत हिडिम्बा देवी मंदिर से करने का सोचा था। आज जब इतने सालों बाद जब अवसर मिला तो भी हम सबसे पहले ढुंगरी नामक जगह पर स्थित हिडिम्बा देवी मंदिर ही गए। वैसे हिडिम्ब राक्षस की बहन हिडिम्बा से तो सभी परिचित होंगे। जब पहली बार इस मंदिर का नाम सुना था तो ये लगा था कि कैसी अजीब सी बात है एक राक्षसी के नाम पर मंदिर होना, पर फिर बाद में पूरी कहानी ज्ञात हुयी कि भीम की पत्नी हिडिम्बा एक पतिव्रता नारी थी जिसने अपने पति की रक्षा के लिए अपने पुत्र घटोत्कच को युद्ध भूमि में भेजा था। इसी कारण हिमाचल में हिडिम्बा को देवी के रूप में पूजा जाता है। पहाड़ों में देवी माँ का निवास स्थल ऊँचे स्थानों पर और देवदार के घने जंगलो के मध्य माना जाता है। हिडिम्बा देवी का मंदिर भी इस बात से किसी भी मायने में भिन्न ना होकर देवदार के घने जंगल के मध्य है। पैगोडा स्टाइल में बने इस मंदिर की संरचना उत्तराखंड के गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका से मिलती जुलती है और बाहर का वातावरण भी लगभग मिलता जुलता हुआ ही है।     
 होटल से हिडिम्बा देवी मंदिर के रास्ते का दृश्य 
       
मंदिर परिसर में दर्शन दर्शन हेतु लगी भीड़ 
                यहाँ के वातावरण में हाट कालिका मंदिर से जो भिन्नता थी, वो शायद यहाँ के व्यवसायीकरण के कारण आ गयी हो, यधपि उसे देख कर भी अच्छा ही लग रहा था। कहीं पर कुछ महिलाएं छोटे छोटे खरगोश और मेमने ले कर ये आग्रह कर रही थी कि दस रूपये में इनके साथ एक फ़ोटो करवा लो, तो कहीं पर कोई हिमाचली वेशभूषा में फूलों की टोकरी ले कर फ़ोटो खिंचवाने का आग्रह कर रहे थे। जैसा कि सभी लोग जानते ही हैं मनाली पूरे भारत में हनीमून डेस्टिनेशन के रूप में भी प्रसिद्ध है, इसलिए यहाँ पर कई नयी शादी वाले जोड़े भी घूम रहे थे और उनके आगे पीछे आस भरी निगाहों  ये महिलाएं और हाथ में कैमरा लिये फोटोग्राफर मंडरा रहे थे। वैसे अच्छा ही है इसी बहाने कुछ ग्रामीण लोगों की रोजी रोटी भी चल रही थी, अन्यथा इन लोगों के पास पलायन के अतिरिक्त दूसरा कोई विकप्ल नही रहता। यहाँ के अद्भुत प्राकृतिक वातावरण के मध्य कुछ फोटोग्राफी करने के बाद हम  मंदिर परिसर से बाहर चले गए।  उन दिनों मेरी बेटी ने नया नया बोलना शुरू किया था ,वो बाहर खड़े याक को देखकर तोतली भाषा में बोलने लगी "याक बैता।" उसके ये शब्द सुनकर ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और झटपट उसे याक की सवारी करवा दी।
हिडिम्बा मंदिर में खरगोश और मेमनों को लेकर बैठी महिलाऐं। 
 याक 
           याक की सवारी के बाद सड़क के दोनों तरफ के  प्राकृतिक दृश्यों पर नजर डालते डालते कब यहाँ से ढाई किलोमीटर की दूरी पर माल रोड से लगे हुए  विहार पहुँच गए पता ही नहीं लगा। देवदार के असंख्य पेड़ों से घिरा वन विहार प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यहाँ पर आराम से प्रकृति दर्शन के लिए कई सारी बैंच लगी हुयी हैं। थोड़ा आगे जाने पर दूर से ही छोटे बच्चों की भीड़ दिख रही थी,कौतूहलवश जा के देखा तो बच्चों का प्ले एरिया नजर आया। कई सारे झूले और उनसे भी ज्यादा मस्ती करते हुए बच्चे। अपने साथ भी बच्चा था इसलिए यहाँ पर ज्यादा समय लगना स्वाभाविक ही था। बहुत देर तक झूलों का आनंद दिलाने के बाद जब वो खुद ही थक कर वापस आ गयी तो आगे बढ़कर नीचे उतरने का रास्ता दिखाई दिया। टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डीनुमा सीढ़ियों से जितना नीचे उतरते जा रहे थे उतना ही प्रकृति और पास आ रही थी। अब हम देवदार के घने जंगल में थे, जहाँ पर महिलाएं कई सारे खरगोश और मेमनों को फोटो खिचवाने के लिए ले कर बैठी थी। यहाँ पर उनकी उपस्थिति चार चाँद लगा रही थी। एक तो घन जंगल और उसमे प्यारे प्यारे से सफ़ेद खरगोश और मेमने बहुत ही मनोरम दृश्य था। नीचे की और थोड़ा और कदम बढ़ाये तो एक छोटी सी  लेक नजर आई जिसमे तीस रुपया ले कर पंद्रह मिनट बोटिंग करा रहे थे, वैसे इसका आकार देख कर मुझे तो इस लेक कहना भी उचित नहीं लग रहा था। आगे बढ़ने के लिए अब सीढियों की जगह ढलान था और  देवदार के पेड़ों के बीच छोटे बड़े पत्थरों को प्रकृति ने स्वयं विश्राम स्थल के रूप प्रदान किया हुआ था। ऐसे वातावरण में पता ही नहीं लगता कि कब नीचे उतरे और जल्दी ही हम वन विहार की सीमा रेखा तक पहुँच गए । यहाँ पर कल कल  बहती हुई व्यास नदी की आवाजें भी आने लगी थी। शायद कोई नदी में न जा सके इस कारण यहाँ पर एक बड़ी सी दीवार बनाई गयी है। थोड़ा ताँका झांकी करने पर नदी के छोर कुछ लोग दिखने लगे ,पर ये समझ नहीं आया कि ये गए किस रास्ते हैं क्यूंकि कोई प्रॉपर रास्ता तो दिख ही नहीं रहा था । कुछ  देर सीमा रेखा के समानान्तर आगे बढ़ने आगे बढ़ने के बाद एक जगह दीवार टूटी हुयी मिली, अब सारा माजरा समझ आ गया कि दीवार फांद के जाना है।
वन विहार का एक दृश्य 
छोटा  सा यह खरगोश


इसे लेक कहना उचित है या नहीं ?
थोड़ा और समीप से 
अब रास्ता कुछ ऐसा था 
नदी का बहाव तेज है। 
         उस पार जाकर देखा तो आश्यर्च होना तो जायज ही था यहाँ पर एक दो लोग नहीं पूरा का पूरा बाजार लगा हुआ था। सब जगह खाने पीने का सामान बेचने वाले खड़े थे और बीच बीच में वो लोगों को चेता भो रहे थे कि ज्यादा आगे तक ना जाये, नदी का बहाव बहुत तेज है। यहाँ पर बैठकर कब वन विहार के जाने का समय हो गया अंदाजा ही नहीं आया। मन मारकर हम वापस हो गए और अब पहुंचे माल रोड पर। 
दीवार के उस पार का दृश्य
व्यास नदी नदी 

         
व्यास नदी का तेज बहाव 
व्यास नदी का एक और दृश्य 
              अब तक शाम हो आई थी और ऐसे में माल रोड की चमक दमक देखते ही बन रही थी, जिधर तक नजर डालों वहां तक लोग ही लोग। हम भी चलते चलते उस भीड़ का हिस्सा बन गए। 
मॉल रोड 
माल रोड की चमक दमक    
            रास्ते में एक जगह चश्मे की दुकान देखकर बेटी फिर शुरू हो गयी नशना, जिसका मतलब था उसे चश्मा चाहिये था। बिना दिलाये तो मानने वाली नहीं थी तो एक दस रूपये का चश्मा उसके लिये लिया और पैदल पैदल होटल को वापस चले गए।
इस श्रंखला की अन्य पोस्ट -

18 comments:

  1. हर्षिता जी नई पोस्ट मनाली के लिए बधाई।
    मै भी कई बार मनाली गया हुं, यह है ही इतनी सुंदर जगह की इसकी प्रशंसा ना करना गलत होगा।
    लेकिन अब यहां पर बहुत भीड रहने लगी है, लोग अपने घर से ऐसी जगह जाना पंसद करते है, जहां शांति हो, प्रकृति के करीब हो, मनाली में यह सब चीजे मौजूद लेकिन लोगो की भीड ने हम जैसे को मनाली से दूर कर दिया है।
    हर्षिता जी बहुत सुंदर फोटो आए है, वन विहार में सबसे सुंदर पेड लगते है, मजा आया पोस्ट पढकर अपनी पिछली यात्रा की यादे ताजा हो गई।

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    1. मुझे तो मनाली बहुत पसंद आया सचिन जी,मनाली नहीं गए तो इसका मतलब है बहुत कुछ मिस कर दिया

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  2. हर्षिता जी नई पोस्ट मनाली के लिए बधाई।
    मै भी कई बार मनाली गया हुं, यह है ही इतनी सुंदर जगह की इसकी प्रशंसा ना करना गलत होगा।
    लेकिन अब यहां पर बहुत भीड रहने लगी है, लोग अपने घर से ऐसी जगह जाना पंसद करते है, जहां शांति हो, प्रकृति के करीब हो, मनाली में यह सब चीजे मौजूद लेकिन लोगो की भीड ने हम जैसे को मनाली से दूर कर दिया है।
    हर्षिता जी बहुत सुंदर फोटो आए है, वन विहार में सबसे सुंदर पेड लगते है, मजा आया पोस्ट पढकर अपनी पिछली यात्रा की यादे ताजा हो गई।

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  3. मनाली और शिमला मेरे दिल के बहुत ही करीब है । होटल की बालकनी से झांकता हुआ वर्फ का समुन्दर आज भी आँखों के सामने सजीव हो जाता है । हिडम्बा मन्दिर और मालरोड की चकाचोंध मन को ललचाये जाती है । पर नदी हमको मनाली के रास्ते में तो मिली थी पर मनाली के अंदर नहीं। वो फिर कभी देखेगे। पोस्ट जानदार है जल्दी ही आगे के बारे में जानकारी मिलेगी।

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  4. धन्यवाद आपका

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  5. वर्ष 2011 dec में रात के 1 बजे हम मनाली पहुचे । सुबह 7 बजे जब अपनी बालकनी से बाहर झाका तो वैसा ही अनुभव किया जैसा आपने लिखा है ।
    सूरज की किरणों से पर्वत पर पड़ी बर्फ सोने की तरह चमक रही थी ।
    वो नजारा आजतक नहीं भूल पाये ।
    आपका धन्यवाद एक बार फिर यादो को ताजा कराने के लिए ।
    हिडिम्बा मंदिर के करीब एक गर्म पानी का स्त्रोत है । वो भी अच्छी जगह ।
    अच्छे फ़ोटो के साथ बेहतरिन यात्रा वृतान्त ।

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  6. naye blog ki badhai , road ki lambi journey ke wajah se aaj tak manali nahi gaya hun.....

    aap ke starting ke font or badh ke alagh alagh hai. kindly check.

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  7. याक बेता, और नसना.... बढ़िया। मजा आया वृतान्त पढ़कर, फ़ोटो भी बहुत सुन्दर।

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  8. मनाली जैसी जगह अभी तक मुझसे दूर है , इसकी खूबसूरती के किस्से ललचाते हैं ! बच्चों की तोतली जुबान कितनी प्यारी लगती है ! हिडिम्बा में भीड़ बहुत होने लग गयी है ! शानदार यात्रा वृतांत हर्षिता जी !!

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  9. सुन्दर चित्रों के साथ शानदार यात्रा वर्णन।

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  10. हर्षिता जी ,बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने मनाली का आपने , और तस्वीरों ने तो इसमें चार चाँद लगा दिए हैं !

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  11. Amazing shots of the place. Very beautiful.

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  12. अच्छा लिखा है आपने। अपने हनीमून पर मैं भी यहीं गया था। काफी समय बीता था तब इस व्यास नदी के साथ !

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  13. बहुत ही रोचक
    पढ़ते समय एक बार भी ध्यान नहीं भटकता

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  14. बहुत सुन्दर ,सजीव प्रस्तुति !

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