Monday 18 April 2016

घंटियों और चिट्ठियों के लिए प्रसिद्ध मंदिर की झलकियाँ

             अल्मोड़ा में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो गोलू देवता  के दरबार चितई ना गया हो। गर्मियों की छुट्टी में दूर दराज से आने वाले लोग भी किसी तरह समय निकाल कर यहाँ अवश्य ही जाते हैं। ऐसे में अगर किसी लोकल बन्दे से पूछा जाये कि यहाँ देखने जैसा क्या है तो उसका जवाब चितई मंदिर ही होगा,बहुत मान्यता है इस मन्दिर की। यहाँ आस पास में चीड़ के घने जंगल भी मिल जाते हैं और मौसम अगर खुशनुमा हो तो हिमालय के दर्शन भी हो जाते हैं।
मंदिर के पास  दिखता हिमालय 
एक अन्य दृश्य। 
         
  
               गोलू देवता को पूरे उत्तराखंड में न्याय का देवता माना जाता है। जो आदमी कोर्ट- कचहरी से उम्मीद खो बैठता है, वो अपनी अर्जी गोलू देवता के दरबार में लगा देता है। अब अर्जी तो अर्जी है प्रॉपर तरीके से ही लगानी होती है। इसलिए स्टाम्प पेपर पर नोटरी वगेरह के साइन करा कर के गोलू देवता के नाम पर चिट्ठी लिखी जाती है। लेकिन कुछ लोगों का कहना ये भी है कि भगवान तो सबके मन की बात जानते हैं तो वो कागज के छोटे से टुकड़े में ही अपनी समस्या लिख कर लटका देते हैं। एक नियम ये भी है कि दूसरे की लटकायी चिट्ठी को कभी पढ़ना नहीं चाहिए। पता नही इस नियम में कितनी सच्चाई है पर मैं बचपन से यही सुनते आयी हूँ। वैसे कई बार बड़ों की आँख बचा कर हम पढ़ भी लिया करते थे। 
          गोलू देवता को न्याय का देवता क्यों कहा जाता है इसके पीछे एक कहानी है ,ऐसा माना जाता है कि गोलू देवता ने अपनी माता को न्याय दिलवाया था। गोलू देवता चम्पावत के राजा झलराय के पुत्र थे। सात रानियों के होते हुए भी निसन्तान राजा बहुत दुखी रहते थे। पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखते हुए उन्होंने भैरव देवता की आराधना करी।  पूजा से प्रसन्न हो कर उन्होंने भगवान ने आशीर्वाद दिया कि तुम किसी वीरांगना से आठवां विवाह करो तब में पुत्र रूप में तुम्हारे घर आऊंगा। इसके बाद राजा परेशान कि ऐसे वीरांगना कहाँ से लाऊँ। एक दिन राज शिकार के लिए गए थे तो उन्हें एक कन्या दिखाई दी जो दो लड़ते हुए सांडों को अलग कर रही थी। इस स्त्री से राजा ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो वो बोली आप मेरे पिता से बात करिये। इस तरह से अद्भुत व्यक्तित्व की स्वामिनी कलिंगा से राजा का विवाह हो गया।        
          धीरे धीरे कर के वो घडी भी आ गयी,जब कलिंगा के पुत्र होने वाला था। पर बाकि की रानियां कलिंगा से द्वेष रखने लगी थी तो उन्होंने चालाकी से कलिंगा को अपनी बातों में उलझा लिया कि कलिंगा के लिए कुछ दिन तक अपनी संतान को देखना ठीक नहीं है और उसकी आँखों ने पट्टी बांध दी। इसके बाद उन्होंने उसके पुत्र को सील बट्टे से बदल दिया और बच्चे को एक लोहे के बकसे में रखकर बहा दिया। बहते बहते ये बक्सा एक गोरीहाट पहुँच गया और वहां एक मछुआरे के जाल में फंस गया। उसने सोचा आज तो बड़ी मछली फँस गयी और जाल को ऊपर की तरफ खींचा। जाल खींचने पर उसके बक्सा मिला और बक्सा खोल के देखा तो उसके अंदर एक जीवित बच्चा। उनसे इस बालक को ले जा कर अपनी पत्नी को दे दिया। निसंतान दम्पति होने के कारण उन्होंने बच्चे को अपना लिया और गोरीहाट में मिलने के कारण इसका नाम गोरिल रख दिया। धीरे धीरे बालक अपनी बाललीला के साथ साथ चमत्कार भी दिखाने लगा और आस पास के लोग उसे चमत्कारी बालक मानने लगे।
         एक दिन गोरिल ने बालहठ में आ कर घोड़े की मांग करी, अब मछुआरा असली का घोडा तो कहाँ से लाता, इसलिए उसने लकड़ी का एक घोडा बनवा दिया। अब गोरिल दूर दूर तक इस घोड़े में घूमने लगा और एक दिन घूमते घूमते अपने पिता की राजधानी धूमाकोट पहुँच गया और वहां के रानी जलाशय में उसे अपनी माताएं दिखाई दी। उसने उसने जलाशय में अपने घोड़े को पानी पिलाने की अनुमति मांगी। रानियां उसका उपहास करते हुए बोली लकड़ी का घोडा भी कहीं पानी पीता है तो वो बालक बोला जब एक स्त्री सिल बट्टे को जन्म दे सकती है तो लकडी का घोडा भी पानी पी सकता है। इस तरह से उसने अपने जन्म की पूरी कथा राजा को सुनाई और अपनी माता कलिंगा को न्याय दिलवाया। इसके बाद राजा ने उसे अपना राजपाट सौंप दिया और गोलू देवता अपने आस पास के लोगों को न्याय दिलाने लगे । इसी कारण चम्पावत में गोलू देवता का मंदिर स्थापित हुआ। ये मंदिर गोलू देवता का सबसे पौराणिक मंदिर है।
           एक अन्य कहानी के अनुसार गोलू देवता चंद राजा बाज बहादुर की सेना के जनरल थे और उनके सम्मान में अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्थापना की । धीरे धीरे यहाँ से इष्ट देवता के रूप में विख्यात हुए और यंहा से इनकी प्रसिद्धि फैलते फैलते इनके मंदिर घोड़ाखाल और पौड़ी में भी बनाये गए। पौड़ी में इन्हें कंडोलिया के नाम से जाना जाता है क्योंकि शायद कुमाऊं की एक लड़की अपने विवाह का समय अपने इष्ट देवता को कंडी में रखकर अपने साथ ले गयी और वहां भी ये पूजे जाने लगे। कुछ समय पश्चात् गोलू देवता ने किसी को सपने में दर्शन दे कर कंडोलिया में अपना मंदिर बनवाने को कहा। यदि इस कहानी में कोई त्रुटि हुयी हो तो गोलू देवता से माफ़ी मांगती हूँ । ये तो थी गोलू देवता के मंदिरों की स्थापना किस प्रकार हुयी इस बारे में जानकारी। अब चलते हैं यहाँ दर्शन के लिए।
           चितई मंदिर अल्मोड़ा पिथौरागढ़ रोड पर आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ जाने के लिए धारानौला स्टेशन से बस या शेयर जीप मिल जाती हैं। जो कि नारायण तेवाडी देवाल होते हुए चितई मंदिर जाती है। कई बार हम लोग पैदल रास्ते से होते हुए इस जगह पहुँच जाते थे और यहाँ से किसी बस या जीप में चढ़ जाते थे। यहाँ पर चितई मंदिर के साथ साथ एक और आकर्षण वन विहार भी है। जहाँ पर पांच रूपये का टिकट दे कर तेंदुआ,खरगोश, सफ़ेद बन्दर, भालू, हिरन और बारह सिंघे के दर्शन किये जा सकते हैं।
रास्ते का एक चित्र 
हिरन 
बारह सिंघा 
पानी पीता हुआ भालू 
             यहाँ से चितई मंदिर की दूरी चार किलोमीटर की है ।सर्दियों का मौसम हो या आसमान में बादल हो तो पद यात्रा में भी खूब आनंद आता है। प्रकृति को काफी करीब से देखने को मिलता है।चितई मंदिर पहुंचते ही कई छोटी बड़ी प्रसाद और घंटियों की दुकानों के दर्शन होते हैं। मुख्य द्वार से ही शुरू हो जाती है बड़ी छोटी घंटियों के दर्शन और ध्वनि का सुनाई देना। यहाँ से करीब तीन चार मिनट तक चलने के बाद मंदिर का मुख्य परिसर दिखाई देने लगता है यहाँ पर लोगों का जमावड़ा और जगह जगह लगी हुयी चिट्ठियों के दर्शन होते हैं। यहाँ पर घंटियों को कुछ इस प्रकार बबांधा जाता है कि वो हवा चलने से या बजाने से बजे ना ,वर्ना इक साथ इतनी सारी घंटियों की ध्वनि से मंदिर का वातावरण गुंजायमान हो जायेगा। समय समय पर मंदिर प्रशासन पुरानी घंटियों को निकालता भी रहता है जिससे नयी घंटियों को लगाने के लिए जगह मिलती रहे। कई बार लंबी लाइन पर लगना पड़ता है तो कभी मिनट में दर्शन भी हो जाते हैं, यहाँ पर छोटे बड़े दो तीन मंदिर और है जिनमे दर्शन करके बंदरों से बचते हुए बाहर निकलना रहता है।बाहर जाने के बाद हलके चाय नाश्ते की कई दुकाने दिखाई देती हैं अगर पहाड़ी स्वाद को जानना हो तो चाय के साथ आलू, पकोडा और रायता एक प्लेट में मिलवा के खाएं सच में मन खुश हो जायेगा। रस्ते चलते यहाँ पर कहीं से भी हिमालय के दर्शन भी हो जाते हैं
मंदिर परिसर की भीड़ और पीछे खड़े हुए चीड़ के जंगल 
घंटियों और चिट्ठियों का एक नजारा
डिंग डाँग बेल। 
                  इसी रास्ते में अगर अल्मोड़ा की तरफ वापस बढे तो एक और मंदिर जो कि डाना गोलज्यु के नाम से प्रसिद्ध है पहुँच जायेंगे। यहाँ पर पैदल या गाड़ी दोनों माध्यम से जाया जा सकता है। यहाँ पर ज्यादा दुकान वगेरह नहीं हैं, एक शांत वातावरण में जंगल के मध्य मंदिर है। आसपास के जंगल में चीड़ के पेड़ों के समीप बैठकर थोडा समय व्यतीत किया जा सकता है। 

डाना गोलज्यू जाने का पैदल रास्ता 
                         इसके बाद सड़क में खड़े हो जाओ और अल्मोड़ा की  तरफ आने वाली किसी भी गाड़ी को हाथ देकर चढ़ जाओ, वापस बाजार तक पहुंचा देगी। थोड़ा दूरी पर कफडखान में डाना गोलज्यूँ का एक और मंदिर है जिसकी प्रसिद्धि गैराड मंदिर के नाम से है। इस मंदिर के आस पास भी प्राकृतिक सौंदर्य कूट कूट कर भरा हुआ है। यहाँ पर कई छोटे बड़े गोल गोल पत्थर है जिन पर घंटो तक बैठा जा सकता है। 
रास्ते का एक दृश्य 
यहाँ पर प्रकृति ने बैठने के लिए इस तरह की कुर्सियां बनाई हुयी हैं। 
एक और दृश्य। 
Almora:An Introduction
घंटियों और चिट्ठियों के लिए प्रसिद्ध मंदिर की झलकियाँ
Kasar Devi,Almora
Crank Ridge,Almora
Jageshwar Temple, Almora
Gananath,Almora

13 comments:

  1. As usual beautifully written post with full details.

    ReplyDelete
  2. देवताओं के ऐसे नाम भी होते है...रोचक किवदंती।www.travelwithrd.com

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर पोस्ट, जानकारी भी मिली ओर सुंदर फोटो भी देखने को मिले।

    ReplyDelete
  4. Beautiful shots of the place. Very nice zoo.

    ReplyDelete
  5. गोलू देवता की कहानियां बहुत रोचक हैं ! रास्तों के फोटो बहुत ही सुन्दर और आकर्षित करने वाले हैं , डिंग्डोंग बेल्ल , बढ़िया ! लेकिन इस बार फोटो छोटे क्यों है ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. ओरिजीनल फ़ोटो हार्ड डिस्क की शोभा बढ़ा रहे हैं इसलिए

      Delete
    2. ओरिजीनल फ़ोटो हार्ड डिस्क की शोभा बढ़ा रहे हैं इसलिए

      Delete
  6. गोलू नाम सुनते ही ऐसा लगता है की किसी बच्चे का नाम होगा । उनके पीछे जो कहानी है वो एक बच्चे से ही सम्बंधित है और रोमांचक भी है । भैरव बाबा के बाल रूप को मेरा नमन ।
    हमारा देश इन्ही आस्था पर टिका है ।
    भारत माता की जय

    ReplyDelete
  7. गोलू नाम सुनते ही ऐसा लगता है की किसी बच्चे का नाम होगा । उनके पीछे जो कहानी है वो एक बच्चे से ही सम्बंधित है और रोमांचक भी है । भैरव बाबा के बाल रूप को मेरा नमन ।
    हमारा देश इन्ही आस्था पर टिका है ।
    भारत माता की जय

    ReplyDelete
  8. बहुत बढ़िया..... यही बैठे बैठे ही मंदिर की यात्रा हो गयी....

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर वर्णन
    खूबसूरत चित्र

    ReplyDelete
  10. बहुत खूब
    खूब लिखा है गोलज्यू की कहानी

    ReplyDelete
  11. बहुत दिन के बाद गोलू देवता की कहानी पढ़ने मे मन तीरप्त हो गया गोलू देवता को सत सत नमन
    बोलो चितई गोलू देवता की जय

    ReplyDelete