Saturday 14 May 2016

Pink City, Jaipur

                    कभी कभी कुछ यात्रायें बिना सोचे हुए अनायास ही बोनस में हो जाती हैं जैसे एक एक साथ एक फ्री, इस तरह की एक यात्रा हमें जयपुर के संक्षिप्त भर्मण के रूप में मिली। घर जाने के लिए टिकट  बुक कराना था, इसलिए एयर टिकट के लिए मजगमारी करनी थी। बुक कराते समय डील  देखते हुए लगा कि बैंगलोर से दिल्ली से जाने  बजाय हम जयपुर से होते  हुए भी जा सकते हैं और जिस ट्रैन से हम दिल्ली से बैठते हैं उसमे जयपुर से ही बैठ जायेंगे इससे बार इधर उधर करने का झंझट भी नहीं रहेगा। मामला जम गया और करीब चार महीने पहले हमने १० मई की सुबह छह बजे वाली फ्लाइट में बैंगलोर से जयपुर का टिकट करवा दिया। ट्रैन में सीट आरक्षित करने से पहले मन था कि एकदिन रुक जायेंगे पर जब तक टिकट कराने का दिन आया तो बैंगलोर में भी सूर्य देव अपने चरम पर आ गए तो लगने लगा जब प्राकृतिक एयर कंडीशनर के नाम से विख्यात बैंगलोर में ही ये हालत हैं हैं तो राजस्थान, और वो भी मई के महीने में थोड़ा मुश्किल ही रहेगा,पर घुमक्क्डी इसीका नाम है। इसलिए उसी दिन का ट्रैन से रिजर्वेशन करवा लिया। अब हमारे पास सुबह आठ से दोपहर दो बजे तक करीब छह घंटे का समय था यहाँ के लिए। इतने में गूगल देव की सहायता से ये भी देख लिया कि कौन कौन सी जगह जा सकते हैं और कहाँ जाना संभव नहीं है। जाने के दो दिन पहले राजपुताना केब वाले से आधे दिन की एयर कंडीशन कार की बात कर ली और ऐसा ड्राइवर देने को बोला जो गाइड का काम भी कर सके।
       सुबह छह बजे की फ्लाइट पकड़ने का मतलब हुआ घर से तीन बजे रात को निकलना। इसलिए सारा  सामान पहले दिन से इस तरह  से पैक रखा कि सुबह उठते ही बैग पकड़ के निकल पड़े पर कितना भी कर लो, फिर भी ढाई  बजे  तो उठना ही पड़ा और टैक्सी बुक करवा के एयरपोर्ट की तरह निकल गए। सुबह चार बजे हम एयरपोर्ट पहुँच गए ,उसके बाद  चेक इन और सुरक्षा जाँच करा कर के अंदर पहुँच गए। वैसे तो सामान पहले से ही कम था एक बड़ा बैग और दो छोटे पिट्ठू। बड़ा बैग जमा होने के बाद आराम से ही टहलना था अंदर। एयरपोर्ट एक ऐसी जगह है जहाँ दिन और रात का पता ही नहीं लगता, हर वक्त एक सा माहौल। अब तक कुछ खाने पीने का मन भी हो गया तो इडली और चाय मंगवा ली। मस्त टाइम पास होता है खाना खाने में, खाना खाने में इतना अंदाजा भी नहीं आया कि पता ही नहीं लगा कब बोर्डिंग का समय हो गया। वैसे अभी सुबह पांच बजे नाश्ता करने का एक उद्देश्य ये भी था कि फिर जयपुर में नाश्ता करना आवश्यक नहीं रह जायेगा और जो नाश्ते में लगने वाले समय है तो बच जायेगा। सुबह आठ बजकर पंद्रह मिनट में हम जयपुर के हवाई अड्डे पर थे बाहर निकल कर ड्राइवर फ़ोन किया तो उसने कहा वो बाहर हमारा  इन्तजार कर रहा है । एयरपोर्ट से बाहर आ कर मौसम का अंदाजा लिया तो उतना गर्म नहीं था जितना हम सोच कर आये थे। मन में एक संतुष्टि इस बात की थी कि मौसम साथ दे देगा पर कहीं न कहीं ये डर भी था कि अभी दिन चढ़ते चढ़ते पारा भी चढ़ जायेगा। एक बार गाड़ी में बैठ गए तो फिर वो ही वातानुकूलित वातावरण। हलकी फुलकी बातों के दौरान ड्राइवर ने जयपुर का थोड़ा थोड़ा परिचय देना शुरू किया  और उसने अपने अनुभव  के आधार कहा  पहले आमेर का किला जाने की जगह जयगढ़ दुर्ग जाओ तो हम उसके हिसाब से जाने को तैयार हो गए। अब  पिंक सिटी के दर्शन कराते हुए जयगढ़ ले गया। हर शहर की अपनी अलग फीलिंग होती है वो  ही जयपुर को देख कर लगा। पिंक सिटी में प्रवेश करने से पहले साफ़ सुथरी सड़कें करीने से लगे पेड़ ,ट्रैफिक का  नामो निशान नहीं। पहली नजर में ही भा गया ये शहर जयपुर।
                     इसके बाद हम पहुँच गए गुलाबी नगरी में। जिधर देखो उधर करीब करीब एक से शिल्प वाली और गुलाबी रंग की दुकाने।  एक बार को तो ऐसा अनुभव हुआ जैसे हम रामोजी फिल्म सिटी  के निर्मित किसी सेट पर हैं और ऐसा लगा जैसे किसी गांव के बाजार में फिल्म की शूटिंग के लिए कार्डबोर्ड का सेट बनाया गया हो। ड्राइवर से कई बार पूछने के बाद ही यकीन हुआ कि ये दुकाने सच की ही हैं। वैसे पूरी  यकीन तभी हुआ जब खुद वहां जा कर के दुकानों को देखा। सुबह सुबह भीड़ भाड से विहीन खाली खाली सड़कों पर घूमना  गजब का अनुभव था ये भी। इसके  वापस जयपुर से वापसी के  समय थोड़ा भीड़ वाली सड़कों और  खुली  दुकानो वाले दृश्य भी  देखने को मिल गए। एक बात ड्राइवर ने ये बताई की यहाँ पर कुल सात गेट हैं और इसका आकार ऐसे बनाया गया कि अगर  गेट से अंदर  लिया तो दूसरा गेट तो आएगा ही। सब  से रंग के बारे में चर्चा करने पर उसने बताया कि जगह जयपुर के राजाओं की सम्पत्ति है और सरकार द्वारा यहाँ पर गुलाबी रंग करवाना आवश्यक है। वैसे इन दुकानों पर इन लोगों ने अवैध कब्ज़ा करा हुआ है, इनके नाम पर रजिस्ट्री वगैरह नहीं होती तो ये दुकान का रंग बदलने का दुस्साहस नहीं कर सकते। 
                   पिंक  सिटी घुमाते हुए वो हमें अल्बर्ट म्यूजियम  के दर्शन कराते हुए ले गया। दस मिनट के लिए हम यहाँ  गाड़ी से उतरे।  अंदर जाने का विचार नहीं था इसलिए बाहर ही थोड़ा देखते हुए  आगे बढ़ गए। संरचना तो गजब का लग रहा था पर उसके अहाते में बैठे हुए अनगिनत कबूतरों ने इस जगह के सौंदर्य में चार चाँद लगा। दिए। यहाँ के एक दो फोटो ले कर हम आगे बढ़ गए। इसके बाद अगला पड़ाव  बिरला मंदिर ले गया, यहाँ पर हमने गाड़ी से नीचे उतरना भी जरुरी  नहीं समझा। इसका कारण शायद हैदराबाद के बिरला मंदिर का खट्टा अनुभव रहा होगा। वहां की पुरानी यादों को ताजा करते हुए हम जल महल पहुँच गए। यहाँ पर गाड़ी वाले ने पेट्रोल भरवाया और दस मिनट के लिए हम भी यहाँ पर उतर गए। मान सिंह द्वारा निर्मित इस जल महल के विषय में सुना है की ये पांच मंजिला है वैसे जब कोई जा  सकता तो इस विषय में तथ्य का भी क्या कहा जा सकता है। जिस लेक के मध्य में ये बनाया गया है  सिंह लेक के नाम से जाना जाता है। अगर इसमें  बोटिंग की सुविधा होती तो शायद ये जगह काफी आनंददायक होती पर अभी भी गर्मियों की दिनों की शाम बीतने के लिए बढ़िया जगह है। 
इस यात्रा के चलचित्र-
अल्बर्ट म्यूजियम 
कबूतर ही कबूतर 
त्रिपोलिया गेट 

पुराना जयपुर 
गुलाबी इमारतें। 
एक और गेट। 
सिटी पैलेस का  प्रवेश द्वार। 

जल महल। 
जल महल के आस पास का इलाका। 
इस यात्रा की अन्य कड़ियाँ -
इस यात्रा की अन्य कड़ियाँ -
Pink City, Jaipur
Jaigarh Fort,Jaipur
Amer Palace,Jaipur
Hava Maha and Jantar Mantar,Jaipur

10 comments:

  1. बढ़िया है गर्मी में जयपुर.........रियल घुमक्कड़ी तो यही है......
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  2. यादें ताजा हो गई हर्षा

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  3. जयपुर बस थोड़ा ही घूम पाये आप , बहुत कुछ रह गया ! कोई नहीं , फिर कभी जाने का बहाना भी होना चाहिए ! जल महल फिर से देखना अच्छा लगा ! संक्षिप्त लेकिन बढ़िया यात्रा !!

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  4. कम नहीं कम समय में थोड़ा बहुत घूम लिया

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  5. जयपुर में बहुत कुछ है, देखने के लिए फिर भी कम समय में बाहर बाहर से बहुत कुछ देख लिया, आगे की पोस्ट में शायद ओर जगह देखने को मिलेगी..

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  6. "मामला जम गया और करीब चार महीने पहले हमने १० मई की सुबह छह बजे वाली फ्लाइट में बैंगलोर से दिल्ली का टिकट करवा दिया"
    और पहुँच जयपुर गए ;) जे कैसे संभव हुआ ... मेरे से जयपुर दूर नहीं पर फिर भी जा नहीं पाया आज तक, देखो कब जा पाते हैं, आपकी तारीफ़ ने और इच्छा जगा दी..
    "इस यात्रा के चलचित्र" - चलचित्र कह कर सारे चित्र (सारे एक से बढ़ कर एक) दिखा दिए - बहुत नाइंसाफी है... वैसे आपके हैदराबाद वाले खट्टे अनुभव ढूंढूंगा अब मौका लगते ही...

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    1. दिल्ली जाने का जुगाड़ बैठाया ट्रैन से, वैसे आपके वहां से तो नजदीक ही है हो आइये जल्दी ही

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  7. jaipur gurgaon se najdik hone ke karan kafi bar jana hua. ek bar fir se dekh liya aap ke post se. :-)
    font size chota hai , hum jese bujurg logon ko thoda mehnath karni padthi hai padne ke liye.

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