Wednesday 2 November 2016

Drive to Sakleshpur:Shravanbelgola

                अक्टूबर का महीना अपने साथ कई सारे त्योहारों का उल्लास ले के आता है, कहीं बड़े बड़े दुर्गा पूजा के पंडाल सजते हैं तो कहीं गरबा/डांडिया की धूम मचती है। गरबा/ डांडिया तो अपनी सोसाइटी में हमने नवरात्री के प्रारंभिक दिनों में खेल लिया। इन सबके अतिरिक्त अक्टूबर में दशहरे की लम्बी छुट्टियाँ भी होती हैं, मतलब घूमने का कीड़ा जागने वाला समय होता है। मैं दशहरे के समय में शायद ही कभी बैंगलोर में रही होंगी। एक बार गोवा चले गए थे और पिछले दो सालों से हम इन दिनों उत्तराखंड प्रवास पर थे। इस बार कहीं जाने का उतना खास विचार नही बन पा रहा था लेकिन छुट्टी देखकर मन ललचा जरूर रहा था। इतने में पिछले सन्डे को बैंगलोर में रहने वाले भाई का फ़ोन आया घर आ जाओ इतनी छुट्टी हैं साथ में मिलकर प्लान करते हैं और साथ में बैठकर हम लोगों ने कर्नाटक के पश्चिमी घाट में स्थित सकलेशपुर   जाने का विचार बना लिया।
            प्लान कुछ इस तरह से किया गया कि बैंगलोर से सकलेशपुर जाते समय श्रवणबेलगोला में स्थित बाहुबली की मूर्ति देखते हुए जाएंगे और अगले दिन सकलेशपुर लोकल देखा जाये।  वापसी में बेलूर हलीबेडू के दर्शन करते हुए आ जायेंगे। इसी हिसाब से दो दिन के लिए दो कमरे बुक करा लिए। लेकिन जाने के दो दिन पहले भाई के ऑफिस का कुछ अर्जेंट काम आ गया तो वो बोलने लगा तुम लोग जाओ, मेरा काम निपट गया तो मैं अगले दिन आ जाऊंगा पर कुछ पक्का नहीं है सब काम के ऊपर ही है। अब तक हमारा भी उत्साह कुछ ठंडा हो गया। फिर लगा जब एक बार प्लान बन ही गया तो अब जाना तो है ही।
Travel date-8th October 2016
               इस यात्रा का प्रारम्भ ही लेट लतीफी के साथ हुआ और हम घर से आठ अक्टूबर की सुबह साढ़े नौ बजे नाश्ता कर के निकले। इलेक्ट्रॉनिक सिटी से नाइस रोड पकड़ कर चालीस किलोमीटर नीलमंगला तक पहुंचे और यहाँ से आगे बैंगलोर-मंगलौर हाईवे में जाना था। ये टॉल रोड है और खूब जमकर टॉल पड़े हालाँकि रोड की हालात भी टॉल  के हिसाब से अच्छी ही थी। कुल मिलाकर दो सौ साठ किलोमीटर में दो सौ नब्बे रुपया टॉल टेक्स के रूप में धरा लिया गया। नीलमंगला से तीस किलोमीटर आगे शार्क फ़ूड कोर्ट में हम चाय के लिए रुके। यहाँ पर आधे घंटे का स्टॉप हो गया। इसके बाद सत्तर किलोमीटर  बैंगलोर मंगलौर हाईवे में ही चलना था और हेरीसवे नाम की जगह पर श्रवणबेलगोला के लिए कट लेना था। इसी रोड में नब्बे किलोमीटर चलकर हम श्रवणबेलगोला पहुँच गए। रास्ते में एक जगह से दिखाई पड़ी एक बड़ी सी चट्टान और उसमे बनी सीढ़ियों में चढ़ते लोगों का मेला।  गाड़ी पार्किंग में डाल के हम लोग चट्टान की तरफ आगे बढे।  एक जगह जुते चप्पल जमा करा के अपने मोज़े पहन लिए। ऐसा कहा जाता है कि दोपहरी धूप के कारण चट्टान गरम हो जाती है तो नंगे पैर चलना मुश्किल हो जाता है। अगर घर से ना भी लाये हों तो यहाँ पर दस रूपये में मोज़े बेचने वाले खूब घूमते हैं। 
           कर्नाटक के हासन जिले में स्थित श्रवणबेलगोला जैन धर्मस्थल होने के साथ साथ भारत के सात आश्चर्यों  में से एक है। एशिया की बड़ी चट्टान में से एक विन्ध्यगिरि नाम की पहाड़ी में गोमतेश्वर की, जिन्हें बाहुबली के नाम से भी जाना जाता है कि अट्ठावन फ़ीट ऊँची मूर्ति है। यहाँ पर कई सारे तीर्थकरों की छोटी बड़ी प्रतिमाएं बनी हुयी हैं। यहाँ से नीचे को बहुत अच्छे द्र्श्य दिखते हैं। सामने से एक पानी का तालाब दिखाई देता है, ऊपर से देखने में मजा तो बहुत आता है लेकिन यहाँ तक पहुँचने ले लिए छह सौ चालीस सीढियाँ चढ़नी होती है। जिनमे से कुछ तो सामने से ही नजर आ जाती हैं और करीब तीन चौथाई सीढियाँ चढ़ने के बाद चट्टान में थोड़ा थोड़ा तिरछा चलते हुए आगे बढ़ना होता है।  इसके बाद बाकि की सीढियाँ छुपे हुए रूप में सामने आती हैं। वैसे ठीक ही वरना नीचे से आने वालों की हिम्मत बंध पाना मुश्किल हो जाता है। यहाँ थोड़ा देर इधर उधर करने के बाद हमने नीचे का रुख किया। चढ़ने के मुकाबले उतरना हमेशा आसान होता है लेकिन सीढ़ियों में हल्का ढाल होने के साथ कुछ चिकनाहट की वजह से हलकी फिसलन भी थी तो काफी सावधानी की जरुरत थी। नीचे उतर कर पेट पूजा की बारी आयी और हम सुरंगा जैन नाम के एक मारवाड़ी रेस्तरां में पहुँच गए। यहाँ खाना अच्छा था लेकिन बाद में पता लगा कि इधर एक जैन मेस भी है जिसमे खाना मुफ्त में मिल जाता है। 
            इसके बाद गाड़ी निकालकर हम सकलेशपुर के रास्ते में चल पड़े, अभी भी हमारे रास्ते के नब्बे किलोमीटर बचे हुए थे और अब थोड़ा पहाड़ी रास्ता होने के साथ सिंगल लेन रोड में जाना था। हालाँकि यहाँ के पहाड़ उत्तराखंड या हिमाचल जैसे ऊँचे नहीं होते लेकिन हलके हलके घुमावदार होते हैं,अब कुछ कुछ हरियाली दिखने लगी थी जिसके लिए सक्लेशपुर को जाना जाता है। इस तरह से शाम के साढ़े छह बजे हम सकलेशपुर पहुँच गए। 
यात्रा के चलचित्र-
हाईवे 
रास्ते के खेत।  
ऐसी किसी जगह में अपना भी झोपड़ा हो तो मजा आ जाये। 
श्रवणबेलगोला की सीढियाँ। 
ऐसी चट्टान को काटकर सीढियाँ बनाई है।  
आधे से ज्यादा रास्ता तय हो गया। 
मंदिर या कहो व्यू पॉइंट्स 
जगह जगह पड़ी चट्टाने 
व्यू पॉइंट। 
बाहुबली।


नीचे दिखती सीढियाँ।  
इनके नीचे चट्टान पर जाईंयों ने अभिलेख लिखे हैं। 
नीचे का तालाब। 
सुरंगा जैन।
इस यात्रा की समस्त कड़ियाँ -
Drive to Sakleshpur:Shravanbelgola
Belur-Helibedu
Chikmaglur: Land Of Coffee
Sakleshpur, The Green Land

4 comments:

  1. बाहुबली जैन मूर्ति है ? मुझे नही मालुम था ! इतनी साड़ी सीढिया , बहुत कठिन है सच में ! और जो आप ऐसी जगह झोपड़ा होने का सोच रही हैं , वो लोग आपको देखकर कहते होंगे काश मेरे पास भी बंगलौर में ऐसा मकान होता !

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  2. The food around his p lace is awesome! Did you get a chance to xperiemnt with the food?

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  3. Wonderful tour of the place. There is lot to see here.

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  4. Have not been there but read many accounts and I know about the steps from the accounts including yours!

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