Thursday 17 March 2016

Solang Valley,Manali

            समय कितना गतिमान है इस बात का अनुभव गुलाबा में बहुत अच्छे से हुआ। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अभी अभी तो पहुंचे ही थे और इतनी जल्दी  वापस जाने का समय भी हो गया। मन ये कह रहा था  कि अभी तो इन नजारों को नजर भर के देखा तक नहीं, इतनी जल्दी कैसे वापस हो जाएँ। लेकिन वक्त के आगे आजतक बड़े बड़ों की ना चली और विद्वानो का कथन है कि दिल और दिमाग के मुकाबले में हमेशा दिमाग की सुननी चाहिए, इसलिए भारी मन के साथ इन दृश्यों को अपनी यादों में बसाकर हम सड़क की तरफ उतरने लगे। चढ़ने के मुकाबले उतरने में ज्यादा समय लग रहा था, शायद जाते समय पहुँचने की जल्दी रही हो। मजे की बात ये थी कि अभी भी जहाँ भी देखो हर तरफ कुछ नयापन सा लग रहा था। 
एक झलक गुलाबा से। 

गुलाबा 
एक महिला खाने का सामान बेचती हुई। 
ये पानी के छोटे छोटे झरने।
         सोलांग वैली, बहुत सुना है या यूँ कहूँ पढ़ा बहुत है यहाँ के बारे में। वैसे तो ये जगह परिचय की मोहताज नहीं, क्यूंकि नाम ही बहुत है यहाँ का, फिर भी एक छोटा सा परिचय दे ही देती हूँ। मनाली से तेरह किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस घाटी की समुद्र तल से ऊंचाई २४८० मीटर है। ये जगह और कुछ नहीं घरी घास का बहुत लम्बा ढलवा मैदान है जिसके पार्श्व में बर्फ के चमकीले पहाड़ हैं। इस जगह की मुख्य विशेषता ये है कि ये मौसम की तरह अपने रंग बदलते रहती है। गर्मियों के दिनों मे यहाँ आओ तो हरी घास का मनमोहक  मैदान दिखता है , वहीँ अगर जाड़ों में आओ तो ये घाटी बर्फ से लिपटकर अपनी अलग ही छटा बिखेरती है। इस लिहाज से जगह बरसात को छोड़कर पूरे साल के योग्य है। यहाँ पर साल भर कई तरफ के साहसिक खेलों का आयोजन किया जाता है जिनका जिक्र वहां पहुँच कर ही करती हूँ। अभी के लिए गुलाबा से सोलांग की तरफ चल पड़ते हैं। 
         नीचे को उतर ही रहे थे कि एक जगह पर ठीक ठाक सा रेस्तरां देख कर ड्राईवर ने गाड़ी रोक दी। इस समय मुख्य देखने वाली बात थी रेस्तरां की सफाई क्योंकि बेटी को भी खिलवाना था। अपना तो हम कहीं भी खा लेते । उसकी आवश्यकता के हिसाब से अंडा और दूध लेना था जो यहीं पर मिल रहा था। रेस्तरां का नाम था सागु वैली कैफे। आनन फानन में खाना मंगवाया और जल्दी में खा लिया। अब परीक्षा की घडी थी बेटी को खिलाना, खैर येन केन प्रकारेण ये भी हो ही गया। खाने का बिल चुकता कर के हम आगे बढ़ गए।
रेस्तरां 
रेस्तरां के पास कड़ी गाड़ियां 
       रास्ते में छोटा सा एक मंदिर भी पड़ा जिसके बराबर में एक झरना भी था ,खैर हम वहां गए तो नहीं, पर दूर से ही फोटो ले लिया। कुछ लोग वहां जा कर अपना फोटो सेशन कर रहे थे। कभी कभी लगता है आजकल लोग फेसबुक द्वारा दुनिया को दिखने के लिए ज्यादा घूमते हैं नाकि अपनी संतुष्टि के लिए। अपनी अपनी सोच है क्या कर सकते हैं। 
  
यहीं फोटो सेशन चल रहा था। 
          आगे  एक बहुत ही सुन्दर जगह रास्ते में पड़ी , जगह क्या थी  हरी घास का एक मैदान। जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने हरे रंग का मखमली कालीन बिछा दिया हो और पार्श्व में एक  ओर देवदार के पेड़ थे और दूसरी ओर विशाल हिमालय। इस जगह को देखते ही मुंह से निकला गाड़ी रोको और हम निकल गए बाहर। कुछ देर यहाँ पर बैठे और जगह का आनंद लिया। एक और उदाहरण यहाँ देखने को मिला वो ये था कि लोग जगह का चुनाव एक दूसरे को देखकर भी करते हैं। जिस समय हम आये तो हमारी गाड़ी के अतिरिक्त और कोई गाड़ी यहाँ नही थी पर हमारे जाने से पहले गाड़ियों का जमावड़ा सा ही  लग गया था इधर। इसी को कहा जाता  है भेड़चाल ,खैर जो भी हो जगह बहुत सुन्दर थी।

हरी घास का मैदान 
हिमालय दर्शन 
     इसके बाद अगला पड़ाव था वो दुकान जहाँ से कपडे और जूते लिए थे। वहां पहुँच कर सामान वापस किया और आगे बढ़ लिए। पलछन पहुँच कर सीधा रास्ता न जाकर हमने सोलांग वैली वाला रास्ता पकड़ लिया। यहाँ से सोलांग वैली चार किलोमीटर की दूरी पर था।  
सोलांग से पहले दुकाने 
          करीब दस मिनट में हम सोलांग वैली पहुँच गए, पहली झलक में मुझे ये जगह उतनी अच्छी नहीं लगी।  मुझे लगा शायद इस जगह से कुछ ज्यादा ही  उम्मीद लगा रखी थी मैंने। इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि अभी घास पूरी तरह से उग नहीं पायी हो ,क्यूंकि हम मई के शुरआती दिनों में ही यहाँ पहुँच गए थे इसीलिये हरीतिमा अपने शबाब पर ना पहुँच पायी हो।
            यहाँ पर कदम रखते ही सबसे पहले नजर आया एक बड़ा सा मिटटी का मैदान और उसमे खड़े लोगों की भीड़, तो लगा ये क्या जगह हुयी।  पर जब आ ही गए थे तो आगे तक जाकर देखने का सोचा और धीरे धीरे आगे चले गए। जैसे जैसे आगे बढ़ते गए तो भीड़ का कारण पता लगा। ये भीड़ पैरा ग्लाइडिंग करने वालों की थी जो की आसमान से उड़कर जमीन पर टपक रहे थे। यहाँ पर थोडा ध्यान से देखकर चलना पड़ रहा था क्योंकि सर पर ही ना गिर जाएँ इस बात की प्रबल सम्भावना थी। अजी इनका क्या है ये तो हवा के हिसाब से अपनी दिशा परिवर्तित कर लेगें पर चोट तो हमें ही लगेगी ना। ये तो थी मजाक की बात अब यहाँ पर से ढलवा मैदान शुरू हो रहा था। मैदान पर चलते चलते हम कुछ ऊंचाई पर पहुँच गए और इस  स्थान से दृश्य भी उत्तम थे तो हम वहीँ पर विराजमान हो गए। यहाँ आ कर के पता लगा सोलांग वैली की क्या विशेषता है। यहाँ से नजर आ रहा था एक चमकदार सफ़ेद पहाड़ और उसके बीच बीच में रंग बिरंगे पैराशूट कुछ ऐसे लग रहे थे जैसे भांति भांति की चिड़िया आसमान में उड़ रही हो। इस तरह के हजारों दृश्य थे यहाँ पर। ऐसा समा था जिसे देखने में समय का पता ही ना चले। वैसे भी किसी गतिमान चीज को देखने में हमेशा मजा ही आता है चाहें वो कोई ट्रेन ही क्यों ना हो। 

जॉर्बिंग की बॉल और मटेला मैदान 
भीड़ 
          इस तरह के खेलों में कभी रिस्क भी हो सकता है ये भी यहीं देखने को मिला। इतना तो ऊपर बैठकर के अंदाजा आ ही रहा था कि नीचे उतरते समय शायद थोडा सा चोट लग रही है पर हल्का फुल्का तो चलता ही है। पर हमारे सामने सामने ही एक पैराशूट ने अपनी दिशा बदल दी और वो उड़ने की जगह सीधे नीचे ही उतर गया और उसमे सवार व्यक्ति को काफी चोट लग गयी। तुरंत एम्बुलेंस बुलवा कर उसे हॉस्पिटल ले जा जाया गया। इस बात से एक सबक ये मिला की इस तरह के खेलों को उसी व्यक्ति के साथ ही करना चाहिए जिसने सर्टिफाइड कोर्स किया हो । इस बारे में मुझे पहले से जानकारी थी कि मनाली में  पैराग्लाइडिंग करना  उतना सुरक्षित नही है । इस कारण हमारा हवा में उड़ने का विचार पहले से ही नहीं था और अभी अभी इसका जीता जागता उदाहरण भी नजर आ गया। 
नीचे गिरे हुए पैराशूट 
सोलांग 
आज मैं ऊपर जमाना है नीचे।

         होने को तो यहाँ रोप वे भी था पर वो भी काफी महंगा ही था, थोड़ी सी दूरी के चार  सौ रूपये प्रति व्यक्ति मांग रहे थे। इसलिए ये भी करने का उतना मन नहीं था वैसे भी बैठकर देखने में जो  मजा आ रहा था शायद  वो और कहीं नहीं आता। और हाँ एक चीज और थी जो यहाँ हो रही थी वो थी जॉर्बिंग। इस खेल में सफ़ेद रंग की एक पारदर्शक बॉल के अंदर दो लोगों को बांधकर नीचे को लुढ़का दिया जाता है। शायद ये अनुभव भी बहुत रोमांचकारी होता होगा। अब तक हमें एक जगह पर जमे हुए काफी समय हो गया था, तो सोचा एक बार जा के तो देखें आखिर पैराग्लाइडिंग वाले नीचे को उड़ान ले कहाँ से रहे हैं और क्या ये जगह वो ही है जहाँ पर रोप वे द्वारा ले जाया जा रहा है । बस सोचने भर की देरी थी, मन जाने के लिए मचल गया और  हम चढ़ने को तैयार हो गए। पर साथ में जो लोकल बंदा था उसने सलाह दी कि पैदल मत जाओ दूर है ,फिर वापस आने में बहुत टाइम लग जायेगा और ऊपर एक बहुत सुन्दर जगह है वहां नहीं जा पाओगे ,बेहतर रहेगा रोप वे से ही चले जाओ। गजब के नज़ारे थे रोप वे से भी और सोलांग घाटी के तो अद्भुत दृश्य नजर आये। 
        रोप वे में बैठकर ऊपर पहुँचने पर सोलांग घाटी के एक नये रूप के दर्शन हुए। यहाँ से तो सब कुछ बदला बदला सा नजर आ रहा था। जिन पैराशूटों को हम आसमान की ऊंचाई में मंडराते हुए देख रहे थे, उनमे से कुछ यहाँ से ही अपनी उड़ान भर रहे थे। जिन्हें और ऊंचाइयां छूने की चाहत थी वो थोडा और आगे जा कर छलांग लगा रहे थे। हम भी यहाँ से अपनी मंजिल अंजनी महादेव की तरफ बढ़ गए। 
           ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर ही माता अंजनी ने भगवान शिव जी की आराधना कर के हनुमान जी को पुत्र रूप में पाया था। यहाँ पर प्राकृतिक रूप से शिवलिंग के ऊपर झरने का पानी पड़ता है । जो सर्दियों के समय में नीचे गिरते ही जम जाता है और इस तरह से यहाँ पर बर्फ के शिवलिंग का निर्माण हो जाता है। इस दृश्य को मार्च के महीने तक देखा जा सकता है। 

डगर अंजनी महादेव की  
अंजनी महादेव। 
मंदिर तक जाने वाली सीढियाँ 
बर्फ का  शिवलिंग। (गूगल द्वारा साभार)
                स्वतः बनने वाले इस शिवलिंग के कारण इस स्थान को छोटा अमरनाथ या अभिनव अमरनाथ का नाम भी दिया गया है। 
            कुछ समय बिताने के बाद हमने यहाँ से विदा ली और आगे के सफर में आगे बढ़ गए। इसी क्रम में हमने यहाँ पर वशिष्ट मंदिर के दर्शन किये । यहाँ पर एक सल्फर के पानी का कुण्ड है, ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म रोग दूर हो जाते हैं। यहाँ पर हम लोगों ने सिर्फ हाथ मुंह धो लिए, क्यूंकि स्नान पहले दिन कलथ नाम की जगह पर कर चुके थे। इसी के साथ मनाली श्रंखला का समापन होता है।
वशिष्ठ मंदिर।
इस श्रंखला की अन्य पोस्ट -

17 comments:

  1. हर्षा बहुत बढ़िया...यही प्रवाह बना रहे। सच में आनंद आया। बहुत खूब।

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  2. हर्षिता जी सोलांग वैली बहुत ही सुंदर जगह है, अच्छा लगा फोटो देखकर व लेख पढकर।

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  3. हर्षिता जी सोलांग वैली बहुत ही सुंदर जगह है, अच्छा लगा फोटो देखकर व लेख पढकर।

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  4. गुलाबो का हुश्न तो बेमिसाल है हम भी यही तक गए थे और 2 बजे ही लोट आये थे। पर आज सोच रही हूँ की उस ड्रायवर ने हमको सोलांग धाटी के बारे में क्यों नहीं बताया था ।हम भी देख लेते।पर हर्षा तुम्हारी आँखों से भी देखना अच्छा लगा।

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  5. सोलांग वैली ने दिमाग में घर बना लिया है , खूबसूरत नज़ारे और पैराग्लाइडिंग देखकर किसका मन न ललचाएगा ? सानवी को खिलाना आपके लिए बड़ी महाभारत है !! वृतांत अच्छा चल रहा है , इंतज़ार रहेगा अगली पोस्ट का !!

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  6. अच्छी लगी सलोंग घाटी. वो जोर्बिंग के बारे मैंने हाल ही में टीवी पर भी देखा था, रोमांचक होता होगा.
    TRAVEL WITH RD

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  7. अच्छी लगी सलोंग घाटी. वो जोर्बिंग के बारे मैंने हाल ही में टीवी पर भी देखा था, रोमांचक होता होगा.
    TRAVEL WITH RD

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  8. बहुत बढ़िया हर्षिता जी...... सोलांग वैली जयादा अच्छी नही तो जयादा बुरी जगह भी नही है | प्राकृतिक सौन्दर्य का लुत्फ़ यहाँ पर बहुत आता है |

    लेख पढकर अपने यहाँ पर बिताये पलो याद किया हमने

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  9. बहुत सुन्दर मनोरम फोटोज के साथ सोलांग वैली के चित्रण हेतु धन्यवाद !

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  10. Beautiful and very picturesque location.

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  11. आदरणीय ,बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत आभार। "एकलव्य"

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  12. बहुत सुन्दर...
    सुन्दर फोटोग्राफी..

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  13. Hindi me Travel posts padhne me bada mazzaa aata hai!! Manali mera bhi favorite travel location hai ... THanks for sharing.

    www.bootsandbutter.com

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  14. bahut accha likha didi aapne photo to lajawab hai

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